कथाकार

Follow me on





|| प्रतीक्षा ||

 

फ़ोटो : कुन्दन चौधरी 
|| प्रतीक्षा ||  


लौट आएगी                                   
उदास दिन
मुस्काता चाँद
अनमने से रास्ते
बेरंग पहाड़, फूलों की गंध
उनका प्रियतम मौसम

मान-मर्यादा
शान-ओ-शौकत
हवाओं में सुरूर
शहर में बारिश
दरिया में उनके फेंके हुए पत्थर
लौट आएगी,

नींद और उबासी
नादानियाँ, बचकानी हठ
उपहार और ख़त

हाथों की छुअन
माथे की चुम्बन
बिंदी, पायल, चूड़ी
उनके सारे श्रृंगार लौट आएगी

एक क्षण के लिए ही
उनके पास लौट आएगी
मेरे साथ गुज़ारा हुआ समय

नहीं लौट पाती
किसी के प्रतीक्षा में
आँखों से सूखे हुए आँसू

― कुन्दन चौधरी


पिताजी का हाथ - कविता


Photo : Google
Photo : Google 


बहुत मुश्किल था
पिताजी का हाथ बनना

उससे भी ज़्यादा कठिन था
उनके हाथों का औज़ार बनना
जिससे वो पाँचों उंगलियों में फँसाकर
फ़सल काटते थे

मैं लिख भी नहीं सकता 
क़लम को पांचों उंगलियों से पकड़ के

सोचता था
किताबों का भार ढोना कठिन था
फिर ख़याल आया 
पिताजी की पीठ वर्षों से 
धूप, वर्षा, मिट्टी का भार ढो रही थी

मैंने देखा
पिताजी का
कुदाल उठाकर
मेरे सपनों से कहीं ज़्यादा भारी था

पिताजी पूरी उम्र 
रेगिस्तान में उगे बबूल के पेड़ बने रहे
उनके छाए में खिल सका
मैं, एक कपास का पौधा।

― कुन्दन चौधरी

महेंद्र सिंह धोनी - एक इंसान से मिलने की ख्वाहिश, कैसे सपना बन जाता है !




१५ साल हो गए आपको देखते हुए, २०११ विश्व कप के बाद दिल में एक अरमान या यूँ कह लीजिये की एक सपना है मेरा आपसे मिलने का।  क्रिकेट की दीवानगी बहुतेरे हर भारतीय वर्ग में मिल जायेगा किन्तु ९० दशक वालों के लिए क्रिकेट एक जूनून है और उस में चिंगारी का काम दादा ने किया और बाक़ी आपने। मैं कितना बड़ा फैन या प्रसंशक हूँ आपका ये मैं भी तय नहीं कर सकता आपके जन्मदिन पर एक छोटा सा मैसेज या एक छोटी सी कविता आपके इंस्टाग्राम और फेसबुक पर हर बार कर देता था। 
कोशिश करता हूँ की आपके व्यक्तित्व का एक छोटा सा हिस्सा अपने ज़िंदगी में ढाल लूँ ,और आपका Quote "I have always believed that process is more important than results" को फॉलो करूं 

आपके रिकॉर्ड, खेलने का तरीका, ट्रॉफी, शांत स्वभाव का जिक्र मैं बिलकुल नहीं करूंगा, ये जगजाहिर है और लगभग सभी भारतीय को पता है। 

कुछ किस्सा जो सच है, मैं यहाँ साझा कर रहा हूँ कि कैसे "एक इंसान से मिलने की ख्वाहिश,सपना बन जाता है "

मेरे एक पडोसी जो रेलवे विभाग " नरकटियागंज " में कार्यरत थे उनका बेटा "सोनू और विक्रम " रांची में आपके मोहल्ले में ही रहकर पढाई कर रहा था और आपके कुछ दोस्तों को जानते भी थे और एकाध-बार आपके साथ क्रिकेट भी खेले हैं जैसा उन्होंने बताया, वो गाँव आये हुए थे और पहला सीजन था आईपीएल का, तो हमारे गाँव के दोस्तों में चर्चा चल रही थी किस टीम को सपोर्ट किया जाये, हम सब ने मुंबई इंडियंस को सपोर्ट करने का मन बना लिया था सचिन सर के टीम में होने के कारण, लकिन ऐन मौके पर उनका चौक पर बहस में आना और आपके बारे में गुणगान सुनाना और हमसब का आप पर लट्टू हो जाना ( पहली बार का अहसास था ये) और फिर हम सब ने चेन्नई सुपरकिंग्स को सपोर्ट करने लगे तब से अभी तक सिलसिला चल रहा है और चलता रहेगा।  

२०११ विश्व कप में चंदा करके प्रोजेक्टर पर मैच देखना, और जीत जाने पर रोना शायद सभी ने इसे महसूस किया था। 

२०१२ में कॉलेज के लिए अपने अंकल कर आंटी के पास मधुबनी में रह रहा था, आईपीएल स्टार्ट हो गया था और रात को चेन्नई का मैच आने वाला था घर में टीवी पर सीरियल चल रहा था, तो बाजार जाकर सड़क पर खड़े होकर पूरा मैच देखा और घर आकर ये झूट बोला की दोस्त के साथ पढ़ रहा था, ( ये झूट कोई बड़ी झूट नहीं थी )  किन्तु हर बार तो ये नहीं बोल सकता था, जिस दिन भी चेन्नई का मैच होना था, गाँव आ जाता था लेकिन गाँव में घर में टीवी था नहीं और अड़ोस - पड़ोस में टीवी थी तो लाइट जाने की समस्या तो फिर दोस्तों के साथ गाँव से लगे हाईवे पर बने लाइन होटल पर सभी मैच देखा करता था। 

दिल्ली में आने के बाद, स्टेडियम में आपको देखने की लालसा थी, न्यूज़ीलैण्ड के साथ कोटला में टी-२० मैच का टिकट कराया और दोस्त के साथ पहुंच गया मैच देखने, पूरे मैच के दौरान लाखों के संख्या में धोनी-धोनी का शोर हो रहा था, उसमें से एक मैं भी था, होर्डिंग लिख के ले गया था " MAHI MAAR RAHA HAI " की शायद आप होर्डिंग पढ़ के एक नजर देख लें ! आप को पहली बार आँखों से देखा और आकर रात भर ख़ुद से बातें की कि आपसे मिलने पर हम क्या-क्या बातें करेंगे। 

दोबारा पहुँचा आपको स्टेडियम में देखने १ November २०१७ को इस उम्मीद में कि नेहरा जी रिटायर्ड होंगे और आप स्टेडियम के राउंड लगाने आओगे तो नजदीक से देख पायेंगे,आवाज लगाने पर शायद आप एक बार मुड़ कर देख लें, इसबार होर्डिंग का आईडिया पीछले २ दिन से बना रहे थे की कुछ क्रिएटिव लिख के ले जायेंगे, दोस्तों ने खूब मजाक भी बनाया, एक शायरी लिखी नेहरा जी के रिटायरमेंट पर, आपने तो नहीं देखा किन्तु कोहली, पंड्या और धवन ने पढ़ा और थम्ब्स अप किया, आप चलते चले गए जैसे मैंने पहले ही सोच लिया था, ये "धोनी " को जानने वाले सोच लेते हैं। 


मैच के दौरान आपके कई फैसलों पर दोस्तों के साथ बहस होता था और मैं आपके लिए सभी  फैसलों में पक्ष में खड़ा होता था, और फैसला सही हो जाने पर, मैच जीत जाने पर दोस्तों से कहता " अब बताओ " से लेकर 
कई अनगिनत यादें और किस्सा जो सिर्फ मैच तक सिमित नहीं रह पाया वो दिल में घर कर गया, आप पर  बायोग्राफी आने से पहले तक हम " महेंद्र सिंह धोनी " को हीरो मान चुके थे और अपने हीरो से मिलने की सपना भला कौन नहीं देखता है ! ....क्रमश:

आपको जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनायें, ईश्वर आपको लम्बी उम्र दें !



बिछड़ना - कविता

Photo : Google
                                                                   बिछड़ जाने का सरल उपाय था
एक-दूसरे के चाहत को
विपरीत दिशा में जा रही
ट्रेनों में छोड़ आयें

हमसे 
अथाह प्रेम करने वाले
नचिकेता की तरह बिछड़ते है
हम वाजश्रवा का किरदार निभा रहे होते हैं।

बिछड़ने के बाद
कहानी और कविता में
तलाशते हैं
एक जीवंत चेहरा 
बिछड़े हुए लोगों की शक्ल में

और हमारी आँखें वीरान हो जाती हैं
उन्हें ढूँढते हुए
जिससे हमें नाराज़ होना था,
बिछड़ना नहीं।
         



                                                                                                   



धृतराष्ट्र और शिखंडी-नज़्म


धृतराष्ट्र और शिखंडी 


औरत को पता होता है संसार के सभी 
वस्तुओं को वापस लाने का तरीका।

यमराज से अपने प्रियतम का प्राण वापस ले आयीं थी सावित्री।
किन्तु मर्यादा पुरुष राम, सीता को पृथ्वी में जाने से नहीं रोक पाए थे। 

वो सभी पुरुष जो स्त्री को दूर जाने से नहीं रोक पाए, 
वो या तो धृतराष्ट्र है या शिखंडी !

सिपहिया


महुआ : ( उम्र करीब ३२ वर्ष, गोरा रंग, लाल रंग की चितकबरा साड़ी पहने हुए ) 
गौरी काकी : (उम्र ६५ वर्ष करीब,गोरा रंग, मध्यम पिले रंग की साड़ी पहने हुए )
पर्दा उठता है (गौरी काकी आती है महुआ के बगल में बैठती हैं) 

महुआ : गौरी काकी आज कैसे याद आ गया इस अभागिन कि आप तो रास्ता ही भूल गए हमारे घर के। 

गौरी काकी : अब का बताई दुल्हिन घर में एतना काम था की तनिको फ़ुर्सत न मिला।सिपहिया के कउनो खबर                      मिली?
महुआ : नहीं काकी, कोनो ख़ोज-खबर नहीं, अब तो उम्मीद भी टूटने लगी है!

गौरी काकी : उम्मीद नहीं छोड़ते दुल्हिन, हमका पूरा विश्वास है की रामप्रताप लौट के जरूर आवेगा। 

महुआ : केतना खुश थे १ महीना पहिले जब हम बताये थे की पेट से है हम, छुट्टी भी मंजूर हो गया था उनका घर आने वाले थे पर पता नहीं विधाता को का मंजूर था!

गौरी काकी : चिंता न करो दुल्हिन सब ठीक हो जायेगा, भगवान के घर देर है अंधेर नहीं।हमका तो गुस्सा आवत रही सरकारी अफसर पर एक महीना से रामप्रतापबा बॉर्डर से गायब हुए रहा कौऊनो अफसर तोहार घर के सुधि लिए न आयल रही, मीडियन (मिडिया) वालन भी खबर एके बार चला के छोर दियहिं।

महुआ :"पिया के आस लगावे अंखिया लोराई, लीहें न कोनो सुधि न दिहेन हरजाई "
गौरी काकी :"मुन्ना जे बरका होई तो उनका बताई, सिपहिया बनके न आपन जिनगी बिताई "

गौरी काकी : दुल्हिन तोहार पेट से जे लल्ला हुवे ओकरा सिपाही कबहो न बनाई।

महुआ : काकी, लेकिन लल्ला तो अबहीं से पेट में सिपाही के जइसन लात चलावेला (लेफ्ट-राइट,लेफ्ट-राइट)(हँसते हुए बोलती है), काकी लल्ला बरका होके सिपाही ही बनेला, उनकर इहे इक्क्षा रहेला।

गौरी काकी : हम  निकल रहनी तू अपन ख्याल रखियह दुल्हिन।

पर्दा गिरता है 

Latest Update

|| प्रतीक्षा ||