कथाकार: January 2018

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पद्ममावत-द चैप्टर

*सहसा ही ये दो ऐतहासिक कथा मन मे उभर आया - l)रामायण में सीता का हरण के बाद का युद्ध
ll)महाभारत में द्रौपदी के चिर हरण के बाद का युद्ध - महज़ एक युद्ध नही था! सीख था जो इतिहास के माध्यम से हमें सीखने को मिला । रामायण वाले कथा में सीता माता पवित्र थी , रावण ने हाथ भी नही लगाया था फिर भी राम ने युद्ध किया इतिहास लिखने के लिए की नारी का अपमान ही बहुत बड़ा कारण होता है विनाश के लिए,महाभारत की कथा में भगवान के सामने द्रौपदी के चीर हरण हुआ ,जो एक बरे नरसंहार का कारण बना, अब दोनों कथा को कलयुग से जोड़ते है-पहले वाले कथा को हम यूँ कहें कि किसी नारी के अस्मिता से खिलवाड़ करना कल भी गुनाह था, आज भी है चाहे वो इतिहास के साक्ष्य से हुआ हो या अफवाहों से हो रहा हो ,तर्कसंगत की बात ये है जो भी लोग,संस्था,राज्य,समूह पद्मावती सिनेमा में दावा कर रहे है कि कहानी में छेड़छाड़ किया गया है , उनका दावा एक बिंदु पे सही है अपितु ये दावा सांस्कृतिक इतिहास को ध्यान में रखकर किया गया हो न कि व्यकितगत और सामूहिक लाभ के लिए।किसी भी फ़्लिमकार को कतई ये अधिकार नही है कि कोई भी ऐतिहासिक,धार्मिक,व्यक्तिगत घटनाओं को तोड़मरोड़ कर लोगों के सामने पेश करे । फ़िल्म के रिलीज को लेकर जो तनावपूर्ण स्तिथि बना है ,जो तोड़फोड़,आगज़नी हुआ है और जो हो रहा है उससे क्या ये नही लगता कि हम उस व्यपारी के लिये लड़ रहे है जो अपने 200-300 करोड़ के निजी फायदे के लिए ये सब नाटक को तूल दे रहा है, क्या हो जाएगा अगर एक और फ़िल्म बैन हो जाये ,उन लोगों के लिए अपना ईगो दावँ पे लगाए जो किसी आतंकवाद के फाँसी के माफिनामों पे सिग्नेचर करने से भी नही हिचकते,खैर, लगभग 39 फ़िल्म बैन हो चुका है , तब हमारा ये फ़िल्मभक्ति जागृत नहीं हुआ था , सच तो ये है कि हम अपने ईगो से लड़ रहे है जिसमे किसी भी हाल में जितना है ,वो भी बिना किसी नजरिये से सोचे हुए, एक मिनट सोच के देखा जाए तो जो फ़साद इस सिनेमा से जन्म लिया है उसके बली कोई 200 करोड़ कमाने वाला नही हम जैसे ही बेरोजगार होंगे , जो कुछ पैसों के लालच में किसी का कठपुतली बनकर तोड़फोड़-देंगे-फ़साद करंगे ,क्या किसी के जीवन का क़ीमत एक फ़िल्म से बढ़कर है, जिस सेना को 26 जनवरी के परेड में औऱ बॉर्डर पर बिगड़ते हालात में होना चाहिए वो हमें सिनेमाघरों के बाहर हमें पॉपकॉर्न खिलाते दिखेगा।क्या खुद भंसाली को ये मूवी रिलीज न कर के एक इंसानियत का क्लाइमेक्स नहीं दिखाना चाहिए ? ऐसे भी अब हम कौन सा हिंदुस्तान में रहते है -इक ज़मीन है जिसके कुछ देश है -हिंदू, मुसलमान, ऊँची जाती, नीची जाति।तो जब अपने पे आएगा देख लेंगे।
मैं कुंदन हिंदू के ऊंची जाति से है, माफ करना टॉलरेंस का डंका नहीं पीट रहा , बस फख्र हो रहा है बताते हुए तो बता दिया।
"तुम्हें क्या है -मूवी देखो,पॉपकॉर्न के मजे लो , ओर बाहर आके मुझे बोलो - भक्त मैं मूवी देख के आ गया"क्या उखाड़ लिया तुम्हारा रामसेना, हनुमान सेना,फलाना-दिलाना । हाहाहाहा - मुबारक हो तुम्हारा ईगो जीत गया,अब राम वाले कांड पे मिलते है,जब वो भी किसी मूवी में जल्द ही बेवफा मजनूं बन रहा होगा तब तुम हम से टकराना!।
Note-मेरा ना तो भंसाली जी से न ही करनी सेना से जो कल से अखबार में आ रहा है,से लेनादेना है ,इस पोस्ट से दोंनो पक्षों में से किसी को कुछ आहत होता है तो जो उखाड़ना है उखाड़ ले।
महाभारत वाले कथा के बारे में क्या कहूँ रोज़ ही चीर हरण हो रहा है , कभी भरी सभा मे तो कभी रात के अंधेरे में , कभी घर से उठा के तो कभी गाड़ी में खींचकर , दुर्योधन भी बदल गया है और हम सब तो कृष्ण बने ही है , सुबह उठ के गीता का पाठ फेसबुक,इंस्टाग्राम, ट्विटर पे पोस्ट के रूप में  डालते ही है... to be continue....
जय हिंद,जय देश
Note(2)- देश मे सब टुकड़े आ गए (हिंदू,मुस्लिम,ऊँचीजाती,निचलीजाती) पहले ही कहा था अब हिंदुस्तान रहा ही नही।
#Kundan Choudhary©™

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