कथाकार: August 2017

Follow me on





Shayri-20

काफ़िला मेरे मैय्यत में , रहमत काम आई
हुकूमत के खजाने की , रक़म काम न आई,

बाढ़-कहानी

(गाँव में भीषण बाढ़ आया हुआ हैं एक परिवार के लोग शहर जाने की तयारी कर रहे है )आगे पढ़िए...

(सुयश-जयकांत का बेटा)६ साल का एक बच्चा - मम्मी हम कहाँ जा रहे है?
(अभिकान्त-जयकांत का पिता)अधेड़ उम्र करीब ७० वर्ष - बहु एक बार फिर सोच लो!
(त्रिया-जयकांत की पत्नी)- सोच लिया है बाबूजी अब हम नहीं रुकेंगे, पानी ही पानी है पूरे गाँव में। 
जयकांत- त्रिया, एक बार फिर से सोच लो, हम शहर जाके करेंगे क्या ? गाँव के लोग तो यहीं रह रहे है, हालत कैसे भी हो हमसब एकसाथ मिलकर निपट सकते है इससे और भगवान के लिए एक बार तो बाबूजी के बारे में सोच के तो देखो! 
त्रिया- तुम्हें चलना है तो चलो, वरना मेरे रिश्तेदार हैं मुझे रखने के लिए। 
जयकांत -रोते हुए गले लगता है अपने पिता का। 
अभिकान्त- बेटा तुम रो क्यूँ रहे हो? हमसब कुछ ही दिनों में तो वापस आ जायेंगे जब बाढ़ की पानी ख़त्म हो जायेगा अब जा ही रहे हैं तो हँसी ख़ुशी चलो ऐसे आँशु टपकाते हुए नही।
(सामान की ३-४ गठरियों के साथ सभी लोग नदी तट पहुँचते है )
नाविक - नदी पार करना है क्या बाबूजी ? १० टका में छोड़ देता हूँ उस पार , आओ बैठो बाबूजी इससे सस्ता में कोई और न छोड़ेगा।
(सभी नाव में बैठ जाते है )
नाविक - सब बैठ गए, चलें अब?
त्रिया- रुकिए जरा, बाबूजी आप ने पूजा सामग्री की पोटली तो लाया ही नहीं घर से, पूजा कैसे करेंगे शहर में ?जाइये अब जल्दी ले के आ जाइये तब तक नाव रुकी हुई है। 
अभिकान्त - हां बहु अच्छा याद दिलाया मैं अभी ले के आया।
त्रिया-चलो भैया नाव चलाओ। 
नाविक - लेक़िन बहुरानी बाबूजी आएंगे तब तो चलेंगे।
त्रिया - नहीं बाबूजी हमारे साथ नहीं आ रहे !आपको पार कराना है तो पार कराओ नदी नहीं तो हम दुसरा कोई नाव ढूंढते हैं। 
नाविक- नाव को खेवते हुए आगे बढ़ जाता है। 
(जयकांत नाव पे बैठे हुए मौन है, आज नदी में कई रिश्ते बह रहे थे )
कुछ देर बाद अभिकान्त नदी तट पर पहुँचता है और वहां के नाविक से पूछता हैं -भैया, यहीं नाव पे मेरा बहु,बेटा, पोता था कहाँ गये पता है आपको ? कोई बताओ कहाँ गए सब? बोलो..!(कुछ देर इंतज़ार के बाद आँख से आँशु पोंछते हुए हाथ में पूजा की 
पोटली लिए घर की और चल दिए) 
फ़ोटो : Google 

Shayri-19

हसरत सब की ग़ुलाब हो ऐसा मुनासिब तो नहीं।
कलम महबूब लिखें, हाथ सबके यहाँ ग़ालिब तो नही।

Shayri-18

इक फ़िक्र क्या बढ़ी मेरी हस्ती में !?
उम्र के तानों ने बुढ़ा कर दिया !

Shayri-17

लाखों तोहमतें हैं मेरे मुक़ाबिल के ,
इक़्तिज़ा है , किसी सजा का।

Shayri -16

नायाब शाहकार हो तुम उस कुम्हार की,
यूँ ही तुम्हें बनाने की तोहमत लिए बैठा है ख़ुदा..
शाहकार=उत्कृष्ट कृति

Latest Update

|| प्रतीक्षा ||