कथाकार: February 2019

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कश्मीर की कली - नज़्म


कश्मीर की कली 


हसरतें अभी कुछ नहीं ,
नींद से भौचंक उठा  ,
सपनों में एक वाक़या हुआ ,
उस दिन काले बुर्के में ,
ग़ुलाब वाले हाथ,
दो लाल चूड़ियां पहने ,
पत्थर चुन रहीं थी।
मेरे जवानो के लहू
बहाने को।
कैसे मान लूँ ?
कश्मीर नायब हैं !
खूबसूरत है !!

घटी के मोहतरमा ,
आप इश्क़ करना सिख लो ,
हम बेवफ़ाई का दर्द झेल लेंगे ,
अब पत्थर का दर्द चुभता है।


पुलवामा अटैक- शायरी



पुलवामा अटैक में शाहदत को प्राप्त हुए सभी वीरों को " इनफिनिट वर्ड " के और से भावपूर्ण श्रद्धांजलि !!
दिलासा मायने नहीं रखते जब ऐसे हमले होते हैं। 
हमें सबक सिखाना होगा उन कायरों को जो ,
अपने कायराना हरकतों से बाज नहीं आ रहे 
उनके जड़ों को ख़त्म करने का समय आ गया है। 



हयात-ए-इश्क़



और फ़िर मोहब्बत वाला दिन ढल गया ,
हयात - ए - इश्क़ दिल से निकल गया। 





इश्क़ और ख्वाब


जो सेतु बनाया है , इश्क़ में तेरे ,
चलके कभी आना , तू ख्वाब में मेरे। 





इश्क़ और सूली


सूली पर लटकना चाहता है ,
दिल शायद इश्क़ करना चाहता है।  




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