कथाकार: January 2019

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मुल्क़ आज़ाद क्यों हुआ !

अपने राहों में ही ठोकरें ,
अपने पावँ में ही छाले,
दवा दुकानों में फिर, इज़ाद क्यों हुआ,
ये मुल्क आज़ाद क्यों हुआ !

चूमने को ओंठ, खुले हैं,
बोलने को, लब बंद है,
आज़ादी फ़िज़ा में आबाद क्यों हुआ,
ये मुल्क़ आजद क्यों हुआ !

सब में जवानियाँ हैं बराबर के,
कुछ मर रहे देश के लकीरों पे,
कुछ इश्क़ में बर्बाद क्यों हुआ,
ये मुल्क़ आजद क्यों हुआ !

हवा पे पाबंदी कहाँ,
गीता औऱ कुरान में,
एक सा धड़कता है दिल,
तिरंगों की गान में,
फिर धर्म का फ़साद क्यों हुआ,
ये मुल्क़ आजद क्यों हुआ !

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शब्दार्थ :-

देश की लक़ीर = बॉर्डर
चूमने को ओंठ = धारा 377

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