कथाकार: पिताजी का हाथ - कविता

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पिताजी का हाथ - कविता


Photo : Google
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बहुत मुश्किल था
पिताजी का हाथ बनना

उससे भी ज़्यादा कठिन था
उनके हाथों का औज़ार बनना
जिससे वो पाँचों उंगलियों में फँसाकर
फ़सल काटते थे

मैं लिख भी नहीं सकता 
क़लम को पांचों उंगलियों से पकड़ के

सोचता था
किताबों का भार ढोना कठिन था
फिर ख़याल आया 
पिताजी की पीठ वर्षों से 
धूप, वर्षा, मिट्टी का भार ढो रही थी

मैंने देखा
पिताजी का
कुदाल उठाकर
मेरे सपनों से कहीं ज़्यादा भारी था

पिताजी पूरी उम्र 
रेगिस्तान में उगे बबूल के पेड़ बने रहे
उनके छाए में खिल सका
मैं, एक कपास का पौधा।

― कुन्दन चौधरी

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