कथाकार: May 2018

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करतब वाली माँ

करतब वाली माँ
अज़ब का करतब देखा है....
सुबह से शाम,शाम से रात,
न शिकन न थकावट,
न जितने की मंशा ,
न हारने के खौप,
ना मदारी ,ना भीड़ न हुजूम,
सर्कस को स्वर्ग बनाते देखा है...
अजब का करतब देखा है...
सपनों को संवारते
खुशियों को संजाते
दुःखो से लड़ते
भूख को निगलते,
जज्बातों को सिसकते देखा है...
अज़ब का करतब देखा है...
आखों में आशाओं,
हाथों में जादू,
पल्लू में सिक्कों को बांधे हुए देखा है,
हर घर में एक माँ को करतब करते हुए देखा है।

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