कथाकार: September 2017

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एक शाम ऐसी हो


एक शाम ऐसी हो ....
तुम महकती सुबह मेरी और मैं सूरज तुम्हारा
तुम चांदनी रात मेरी और मैं जुगनू तुम्हारा। 

एक शाम ऐसी हो ....
 तुम याद मेरी और मैं एहसास तुम्हारा
तुम गीत मेरी और मैं सरगम तुम्हारा।

एक शाम ऐसी हो ....
तुम मुस्कराहट मेरी और मैं मासूमियत तुम्हारा
तुम साहिल मेरी और मैं किनारा तुम्हारा।

एक शाम ऐसी हो ....
जो इक पल मेरा हो सारी जिंदगी तुम्हारा
जो मनाना मेरा हो और रूठना तुम्हारा।

एक शाम ऐसी हो ....
बादलों का सेहरा मेरा हो बारिश की बूंदें तुम्हारा
 तुम गुलशन की गुल और मैं गुलिस्तां तुम्हारा ।

एक शाम ऐसी हो ....
जो तेरे नाम का एक जाम हो और मैं प्याला तुम्हारा 
बस एक शाम तुम मेरी हो और मैं हर शाम तुम्हारा।

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