कथाकार: March 2019

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इलायची - लघु कहानी

    

   "इलायची"   

           
―माँ फ़िर से बिरयानी में आपने इलायची डाल दिये?

माँ―मुझे नहीं आती तुम्हारी वो इश्क़ वाली बिरयानी बनाना ,बता क्यों नहीं देते अपने दिल की बात उसे।

―माँ आपको कैसे पता वो इलायची नहीं डालती बिरयानी में !
    
माँ―जब मैं तेरा टिफ़िन साफ करती हूँ तो उसमें,इलायची की महक नहीं आती,औऱ तू बता दे उसे कहीं वो किसी औऱ के चाय में न घुल जाए !
 (धीरे से हँसते हुए माँ कहती है)


तो लगता है धोखा है!! - Women Day Special


तो लगता है , सब धोखा है!!




साड़ी में जब किसी लड़की को देखता हूँ,
तो लगता है धोखा है!!

वो बदन ढकने को नहीं,
ज़माने के नग्न विचारों को ढकती है, पर्दा करती है । 
हिरे-ज़ेवरात जो नुमाइश के लिए रखे जाते है 
दूकानों में,उन्हें खुद पे नाज होता है ,
की उनके ख़ूबसूरती को ढंका नहीं जाता ,
उनके आजदी पे बोलने वाला कोई  समाज नहीं होता।
औऱ जब शिशे में क़ैद,कोई नग्न लड़की का पुतला देखता हूँ,

तो लगता है धोखा है!!

दिया -नज़्म






दिया -नज़्म 







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