"इंद्रप्रस्थ के छलिया"
वे सभी लौट आए हैंसफ़ेद चमकदार क़मीज़ पहने
सावधान की मुद्रा में खड़े होते हैं,
इस ताक में कि
नए-नए तर्कों और विचारों से
संविधान बचाने की बात करेंगे,
वे हमें सदी के सबसे बुद्धिमान
जनता का दर्जा देंगे,
संविधान बचाने की बात करेंगे,
वे हमें सदी के सबसे बुद्धिमान
जनता का दर्जा देंगे,
जबकि संविधान के पन्नों में
जनता के लिए "चतुराई" शब्द का कोई स्थान नहीं।
और कहेंगे कि हमारे गर्दन को ख़तरा
हमारे ही बाएँ हाथों से है,
हमारे नेता चुनाव के मैदान में पर जीतने के बाद, हमारी गर्दन को
धर्म, जाति और हिंसा की कठपुतली बना देंगे।
वे हमें उपहार में उधार बाँटेंगे,
हमारी आँखों के सामने मुफ्त की रोटी दिखाएँगे,
पर हमें तीसरी आँख से भविष्य देखना होगा
जो मुफ्त में नहीं मिलता।
वे कपास उगाने का फ़ायदा बताएंगे
पर जीतने पर नायलॉन की क़ीमत बढ़ाएंगे,
पर जीतने पर नायलॉन की क़ीमत बढ़ाएंगे,
शहर और कस्बों को कूड़े का ढेर बनाकर
वे नदियों की सफ़ाई की दलीलें देंगे।
वे नदियों की सफ़ाई की दलीलें देंगे।
सावधान की मुद्रा में खड़े होते हैं,
इस ताक में कि
जनता ऊँघे,और वे कुर्सी पर बैठ जाएँ।
अगर वे अपनी चालबाजियों से जीत जाते हैं,
तो मेरे पिता के शब्दों में,
दिल्ली में गूँजता रहेगा—
"जाओ रे जनता, नेता को नहीं पहचाना, जो देश चलाएगा!"
㇐ कुन्दन चौधरी