कथाकार: "इंद्रप्रस्थ के छलिया"

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"इंद्रप्रस्थ के छलिया"


 "इंद्रप्रस्थ के छलिया"

वे सभी लौट आए हैं
सफ़ेद चमकदार क़मीज़ पहने
Image Credit : Nevada Today
धूर्त इरादों के साथ
इंद्रप्रस्थ के मैदान में। 

नए-नए तर्कों और विचारों से
संविधान बचाने की बात करेंगे,
वे हमें सदी के सबसे बुद्धिमान
जनता का दर्जा देंगे,

जबकि संविधान के पन्नों में
जनता के लिए "चतुराई" शब्द का कोई स्थान नहीं।

वे हमारे दाहिने हाथों में हथियार देंगे
और कहेंगे कि हमारे गर्दन को ख़तरा 
हमारे ही बाएँ हाथों से है,

पर जीतने के बाद, हमारी गर्दन को
धर्म, जाति और हिंसा की कठपुतली बना देंगे।

वे हमें उपहार में उधार बाँटेंगे,
हमारी आँखों के सामने मुफ्त की रोटी दिखाएँगे,
पर हमें तीसरी आँख से भविष्य देखना होगा
जो मुफ्त में नहीं मिलता।

वे कपास उगाने का फ़ायदा बताएंगे
पर जीतने पर नायलॉन की क़ीमत बढ़ाएंगे,
शहर और कस्बों को कूड़े का ढेर बनाकर
वे नदियों की सफ़ाई की दलीलें देंगे।

हमारे नेता चुनाव के मैदान में 
सावधान की मुद्रा में खड़े होते हैं,
इस ताक में कि 
जनता ऊँघे,और वे कुर्सी पर बैठ जाएँ।

अगर वे अपनी चालबाजियों से जीत जाते हैं,
तो मेरे पिता के शब्दों में,
दिल्ली में गूँजता रहेगा—
"जाओ रे जनता, नेता को नहीं पहचाना, जो देश चलाएगा!"

㇐ कुन्दन चौधरी 


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