कथाकार: मौसम-कविता

Follow me on

मौसम-कविता


मौसम


आषाढ़ के महीने में

जैसे मेंढकी की गीत

जेठ की दुपहरी में
बाँहें फैलाये जैसे बरगद की छाँह

पूस की रात में
जैसे गरम थपकियों की नींद

लड़कियाँ न जाने कितने 
ही मौसम बन के आती है
लड़कों की ज़िंदगी में!

लड़कियाँ प्रतीक्षा में रहती हैं
लड़कों का मौसम बन के आने का
किन्तु लड़कों का ह्रदय निष्ठुर हो चुका
होता हैं और वो लिखते
रहते हैं मौसम पर कोई कविता।

लड़कों, कभी तुम्हें लू लगे या 
तुम्हारे शरीर पर वज्रपात गिरे,
तुम महसूस करना मौसम के सभी
वेदनाओं को वैसे ही
जैसे लड़कियाँ अकेली उन
मौसमों में गुज़ारती थी अपने दिन।

Latest Update