पितृ दिवस
गिल्ली-डंडा के बीच खेल में,
हाथ में छड़ी लिए
कान पकड़,
बाबूजी, हाँकते हुए जब घर ले जाते थे
तो मानो लगता था
जैसे कोई केवट
चप्पू चलाते हुए
अपना नौका किनारे ले जाता हो।
बेटा हो या गृहस्थ कोई भी नौका को
मँझधार में डूबने नहीं दिया बाबूजी ने।