कथाकार: सिपहिया

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सिपहिया


महुआ : ( उम्र करीब ३२ वर्ष, गोरा रंग, लाल रंग की चितकबरा साड़ी पहने हुए ) 
गौरी काकी : (उम्र ६५ वर्ष करीब,गोरा रंग, मध्यम पिले रंग की साड़ी पहने हुए )
पर्दा उठता है (गौरी काकी आती है महुआ के बगल में बैठती हैं) 

महुआ : गौरी काकी आज कैसे याद आ गया इस अभागिन कि आप तो रास्ता ही भूल गए हमारे घर के। 

गौरी काकी : अब का बताई दुल्हिन घर में एतना काम था की तनिको फ़ुर्सत न मिला।सिपहिया के कउनो खबर                      मिली?
महुआ : नहीं काकी, कोनो ख़ोज-खबर नहीं, अब तो उम्मीद भी टूटने लगी है!

गौरी काकी : उम्मीद नहीं छोड़ते दुल्हिन, हमका पूरा विश्वास है की रामप्रताप लौट के जरूर आवेगा। 

महुआ : केतना खुश थे १ महीना पहिले जब हम बताये थे की पेट से है हम, छुट्टी भी मंजूर हो गया था उनका घर आने वाले थे पर पता नहीं विधाता को का मंजूर था!

गौरी काकी : चिंता न करो दुल्हिन सब ठीक हो जायेगा, भगवान के घर देर है अंधेर नहीं।हमका तो गुस्सा आवत रही सरकारी अफसर पर एक महीना से रामप्रतापबा बॉर्डर से गायब हुए रहा कौऊनो अफसर तोहार घर के सुधि लिए न आयल रही, मीडियन (मिडिया) वालन भी खबर एके बार चला के छोर दियहिं।

महुआ :"पिया के आस लगावे अंखिया लोराई, लीहें न कोनो सुधि न दिहेन हरजाई "
गौरी काकी :"मुन्ना जे बरका होई तो उनका बताई, सिपहिया बनके न आपन जिनगी बिताई "

गौरी काकी : दुल्हिन तोहार पेट से जे लल्ला हुवे ओकरा सिपाही कबहो न बनाई।

महुआ : काकी, लेकिन लल्ला तो अबहीं से पेट में सिपाही के जइसन लात चलावेला (लेफ्ट-राइट,लेफ्ट-राइट)(हँसते हुए बोलती है), काकी लल्ला बरका होके सिपाही ही बनेला, उनकर इहे इक्क्षा रहेला।

गौरी काकी : हम  निकल रहनी तू अपन ख्याल रखियह दुल्हिन।

पर्दा गिरता है 

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