ज़लील होना, गाली सुनना मेरा दिनचर्या बन चूका है।
मैं १ मई को अपने एक दिन का तनख्वाह अपने ऊपर खर्च करता हूँ।
आज मज़दूर दिवस है मैं अपने बक्से से कुछ नोट को गिनकर जेब में रखा।
मैंने शराब के दुकान का रुख किया दो बोतल शराब खरीदा,नमकीन के कुछ पैकेट खरीदा।
मैं तंबू में आया दोनों बोतलें शराब की पीया।
मुझे नशे में ख़्याल आया की क्यों न आज वैश्यालय जाया जाये।
लड़खड़ाते कदमो से मैं वहाँ पहुँचा, एक वेश्या के पास गया और जितने पैसे थे मेरे पास मैंने उसे दे दिए।
वो मुझे एक कमरे में ले गई और पूरी निर्वस्त्र होकर मुझसे कहा,
चल मज़दूरी करना शुरू कर!
ये सुनकर मेरा नशा काफ़ूर हो चूका था और पाँव रुक गए !
मैंने कहा, आज मज़दूर दिवस है और आज के दिन मैं मज़दूरी नहीं करता और मैं चला आया।