कथाकार: कश्मीर की कली - नज़्म

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कश्मीर की कली - नज़्म


कश्मीर की कली 


हसरतें अभी कुछ नहीं ,
नींद से भौचंक उठा  ,
सपनों में एक वाक़या हुआ ,
उस दिन काले बुर्के में ,
ग़ुलाब वाले हाथ,
दो लाल चूड़ियां पहने ,
पत्थर चुन रहीं थी।
मेरे जवानो के लहू
बहाने को।
कैसे मान लूँ ?
कश्मीर नायब हैं !
खूबसूरत है !!

घटी के मोहतरमा ,
आप इश्क़ करना सिख लो ,
हम बेवफ़ाई का दर्द झेल लेंगे ,
अब पत्थर का दर्द चुभता है।


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